दर्द से कांप बेचैन हो छटपटा रही हूं,
औरत हूँ ! ममता,दया,संयम की ताक़ीद तले कब तक सिसकूँ
मासूम कलियों को मसलते देख कब तक तड़पहुँ।
बस !!बहुत हुआ मानवता को शर्मसार करता यह पाशविक खेल,
समय आ गया अब,
बनना होगा दुर्गा,झांसी औ देनी होगी भीषण टनकार!!
रुदन नहीं अब और,
नहीं चुप हो शमा जलाने का
झकझोरना है आगे बढ़
सोई न्याय ऊर्जा को,
भौतिकता तले दबी इंसानियत को।
माँ भारती की सौगंध है हमें ,
आ अब हुंकार भरें,
छोड़ पीछे हिंदू-मुस्लिम
मंदिर-मस्जिद
स्त्री -पुरुष के भेद को।
वरना निरुत्तर होंगे
तार-तार कर बची संस्कृति पर
घिनोना मुखोटा ओढ़े मूल्यों पर
मृत हुई मानवता पर।
बस!! बहुत हुआ यह नँगा नाच।
निर्भया,प्रियंका की चीखों तले
अब हुँकार भरों।
उठो अब हुंकार भरो।
शमा खान
औरत हूँ ! ममता,दया,संयम की ताक़ीद तले कब तक सिसकूँ
मासूम कलियों को मसलते देख कब तक तड़पहुँ।
बस !!बहुत हुआ मानवता को शर्मसार करता यह पाशविक खेल,
समय आ गया अब,
बनना होगा दुर्गा,झांसी औ देनी होगी भीषण टनकार!!
रुदन नहीं अब और,
नहीं चुप हो शमा जलाने का
झकझोरना है आगे बढ़
सोई न्याय ऊर्जा को,
भौतिकता तले दबी इंसानियत को।
माँ भारती की सौगंध है हमें ,
आ अब हुंकार भरें,
छोड़ पीछे हिंदू-मुस्लिम
मंदिर-मस्जिद
स्त्री -पुरुष के भेद को।
वरना निरुत्तर होंगे
तार-तार कर बची संस्कृति पर
घिनोना मुखोटा ओढ़े मूल्यों पर
मृत हुई मानवता पर।
बस!! बहुत हुआ यह नँगा नाच।
निर्भया,प्रियंका की चीखों तले
अब हुँकार भरों।
उठो अब हुंकार भरो।
शमा खान